मध्यम वर्ग का संघर्ष भारतीय सपनों की कहानी Indian economy and education system AlgoNews
कई सालों के आर्थिक विकास के बावजूद बहुत सारे भारतीय अपने माता-पिता के जैसे ही आय वर्ग में फंसे हुए हैं। यह एक कड़वी सच्चाई है जो हमें और आपको सोचने पर मजबूर करती है। यह कहानी केवल देवानंद और गौतम की नहीं है बल्कि उन लाखों लोगों की है जो अपने अच्छे भविष्य की खोज में दिन रात मेहनत किये जा रहे हैं।
देवानंद की दुर्दशा एक ऑटो चालक की कठिन लड़ाई
पटना की सड़कों पर अपने ऑटो को चलाते हुए 55 वर्षीय देवानंद की आंखों में बहुत दर्द झलकता है। सुबह से शाम तक बिना थके काम करते हुए उनकी महीने की कमाई सिर्फ 15000 से 20000 रुपये है। पर इन पेसो से वह क्या कर सकते हैं? जब उनके घर का किराया 4000 रुपये हो तो ऐसे लोगों के लिए बचत की उम्मीद करना एक मजाक है।
पहले हम चावल 10 रुपये प्रति किलो खरीदते थे, लेकिन अब इसकी कीमत 50 रुपये हो गई है। हम जितना कमा सकते हैं उससे ज्यादा तो हम खर्च कर रहे हैं। उनके शब्दों में निराशा है। इन गरीब लोगों के लिए जैसे वैष्णो देवी की यात्रा अब केवल अधूरे ख्वाब बन गए हैं।
गौतम का संघर्ष एक छोटे व्यापार के मालिक की कठिन लड़ाई
वहीं पटना में बेकरी के मालिक गौतम की हालात भी कुछ अलग नहीं है। उनकी महीने की कमाई 2 लाख रुपये है अब आप सोच रहे होंगे कि यह तो बहुत अमीर है परंतु असली बात तो कुछ और है। उनके व्यापार के खर्चे जो लगभग 1.5 लाख रुपये हैं उन्हें केवल 50000 रुपये का मुनाफ़ा देते हैं। क्योंकि उनकी बेकरी में काम करने वालों को सैलरी भी दी जाती है।
उस आय से आप केवल अपना घर चला सकते हैं पर आप अपने परिवार के लिए कुछ नहीं कर सकते। गौतम की बातें सुनकर लगता है जैसे उनका दिल भी इस भारी बोझ से टूट रहा हो। उनके सपने जैसे की अपनी पत्नी के लिए कुछ खरीदना छुट्टी पर जाना सिर्फ धुंधले ख्वाब बन गए हैं।
मध्यम वर्ग के लोग कैसे फंसे हैं मध्यम आय जाल में
देवानंद और गौतम की कहानियाँ सिर्फ उनके जीवन की कहानी नहीं हैं। ये भारत में मध्यम आय के जाल में फंसे अनगिनत लोगों की आवाजें हैं। आर्थिक असमानता और मुद्रास्फीति जैसे मुद्दे न केवल व्यक्तिगत संघर्षों को बढ़ाते हैं बल्कि एक राष्ट्रीय समस्या बन गए हैं।
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